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श्रीमत् स्वामी रंगनाथानन्दजी महाराज की यह पुस्तक आधुनिक आवश्यकता और आधुनिक चिन्तन की दृष्टि से उपनिषदोक्त आत्मतत्त्व की व्याख्या है। जब जब हमारा राष्ट्र उपनिषदों की महान शिक्षा को भूला, तब तब वह अवनत हो गया और हमें ठोकरें खानी पड़ीं। इस ग्रन्थ में लेखक ने औपनिषदिक ऋषियों के दृष्टिकोण को आधुनिक चिन्तन प्रणाली के द्वारा समझाया है। श्रीमत् स्वामी रंगनाथानन्दजी महाराज सुविख्यात विद्वान् संन्यासी हैं, जो सुदीर्घ काल से अपने व्याख्यानों द्वारा सम्पूर्ण भारत तथा विश्व के अनेक देशों में अपने विचारोत्तेजक व्याख्यानों द्वारा रामकृष्ण-विवेकानन्द तथा भारतीय संस्कृति के तत्त्वों का अविरत प्रचार करते रहे हैं ।