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Punarjanam Kyon Aur Kaise (Hindi) (Paperback)

Punarjanam Kyon Aur Kaise (Hindi) (Paperback)

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₹ 10.00
Author
Swami Satprakashananda
Language
Hindi
Publisher
Advaita Ashrama, Kolkata
Binding
Paperback
Pages
0
ISBN
9788185301921
SKU
BK 0001503
Weight (In Kgs)
0.040

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This is a Hindi translation of the book ‘How is a Man Reborn’.

एगिया के एक बड़े भाग में पुनर्जन्म के सिद्धान्त से सभी परिचित है तथा इसे स्वीकार करते है। इस्ताम्बूल में गन् ५४४ ई. में आयोजित चर्च पुरोहितों की एक परिषद में निन्दित एवं परित्यक्त हो जाने के पहले पश्चिमी देशों में इसे सभी मानते थे। अपनी युक्ति- संगतता के कारण अब यह सिद्धान्त पुनः व्यापक रूप से मान्यताप्राप्त होने लगा है। पूर्वी देशों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के तथा पश्चिमी देशों में पुनर्जन्म के सिद्धान्त के प्रचार को देखते हुए ऐसा लगता है कि आधुनिक जीवविज्ञान की गवेषणाओं की पृष्ठभूमि में इसका एक स्पष्ट तथा संक्षिप्त विश्लेषण बहुतों के लिये रुचिकर होगा।

“पुनर्जन्म – क्यों और कैसे?” – ऐसा ही एक विश्लेषण है। मूल अंगरेजी लेख “HOW IS A MAN REBORN?” दो किस्तों में “प्रबुद्ध भारत'(Awakened India) अँगरेजी मासिक-पत्र के सन् १९७० ई० के जुलाई तथा अगस्त के अंकों में प्रकाशित हुआ था। सर्व- साधारण के लाभार्थ इसे पुस्तिका के आकार में प्रकाशित किया गया है। इसके लेखक स्वामी सत्प्र- काशानन्दजी रामकृष्ण मठ के एक वरिष्ठ संन्यासी थे।

उन्हान गयुक्त राज्य अमेरिका संट इस शहर । साल मोगायटीपी स्थापना की थी। एक तो’ मारा”. नियम लेप की रचना के लिये। मोइसे पुस्तक आकार में प्रकाशित करने । अनुमति के लिये हम उनले आभारी हैं। हिन्दी में अनुवाद का कार्य प्रो. चमनलाल सत् । लिया है। जो सम्प्रति गवर्नमेंट कॉलिज फॉर वीमेन नवागवल, चीनगर (काश्मीर) के हिन्दी विभाग में अध्यापन का कार्य करते हैं। पाण्डुलिपि के संशोधन में रामकृष्ण मठ से ही स्वामी आत्मानन्दजी तथा स्वामी मुक्तिदानन्दजी ने विशेष सहायता प्रदान की है। पुनर्जन्मसम्बन्धी लेखक की विवेचना से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पुनर्जन्म के सिद्धान्त को आधुनिक विज्ञान की गवेषणाओं से कोई भय नहीं। बल्कि यह सिद्धान्त ऐसी अनेक घटनाओं का स्पष्टीकरण करता है जिन्हें न तो वैज्ञानिक विश्लेषण से, न ही किसी और मतवाद के महारे इतने सन्तोषजनक रूप से स्पष्ट किया जा सकता है। पुनर्जन्म के सिद्धान्त तथा इसके परिपूरक कर्मवाद का सर्जनात्मक, अर्थपूर्ण एवं दायित्वपूर्ण जीवन के साथ सीधा सम्बन्ध है।

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